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सब्जियों के तल्ख तेवर

सब्जियों के तल्ख तेवर

Yogeshjai by Yogeshjai
July 4, 2023
in News, Politics, Science, World
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hotness of vegetables

hotness of vegetables

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एक खबर का शीर्षक ‘जमीन में पानी, सब्जियां आसमान पर३ टमाटर नकचढ़ा, अदरक पूरी ‘मरोड़’ में’ आसमान छूती सब्जियों की कीमत व उनमें जायका लाने वाले अवयवों की महंगाई की हकीकत को बयां करने में सक्षम है। माना कि हर साल बारिश के मौसम में जल्दी खराब होने वाली सब्जियों के दाम मांग व आपूर्ति के असंतुलन से बढ़ते हैं। लेकिन इस बार टमाटर के दाम सौ रुपये प्रति किलो तक पहुंचने ने सबको चौंकाया है। कभी प्याज को ये रुतबा हासिल था। जो न केवल आम लोगों की आंखों में आंसू ला देता था बल्कि सरकार गिराने-बनाने के खेल में शामिल रहता था। दिल्ली की कई सरकारों की जड़ें हिलाने का काम प्याज ने किया। कह सकते हैं कि तब मजबूत विपक्ष ने जनता के दर्द को राजनीतिक हथियार बनाने में कामयाबी पायी थी। अब जनता के लिये जरूरी सब्जियों की महंगाई को मुद्दा बनाने की कूवत व संवेदनशीलता विपक्षी दलों में नजर नहीं आती। कह सकते हैं कि या तो अब ये मुद्दे जनता की प्राथमिकता नहीं बन पा रहे हैं या विपक्षी दल जनता की मुश्किल को राजनीतिक अवसर में बदलने में नाकामयाब रहे हैं। निस्संदेह, हरियाणा-पंजाब आदि इलाकों में टमाटर की महंगाई की वजह यह बतायी जा रही है कि स्थानीय टमाटर की फसल खत्म हो चुकी है और अन्य राज्यों से आने वाली नई फसल की आमद नहीं हो पाई है। लेकिन मानसून में पहले कभी टमाटर के दामों में ऐसी आग कभी नहीं लगी। निस्संदेह, कुछ अन्य कारण भी इस अप्रत्याशित महंगाई के मूल में हैं। यहां कवि धूमिल की एक चर्चित कविता चरितार्थ होती नजर आती है कि ‘एक आदमी रोटी बेलता है, एक रोटी खाता है लेकिन वो आदमी कौन है, जो न रोटी बेलता है और न खाता है मगर रोटी से खेलता है।’ कमोबेश फल-सब्जियों की महंगाई में एक घटक ऐसा भी है जो बाजार की हवा देखकर जमाखोरी पर उतारू हो जाता है। निस्संदेह, टमाटर आदि कुछ सब्जियां ऐसी हैं, जिनका भंडारण देर तक संभव नहीं है। जल्दी फसल तैयार होती है और जल्दी खत्म भी हो जाती है। लेकिन अदरक, लहसुन व प्याज का मुनाफाखोरों के गोदामों में भंडारण कुछ समय तक रह सकता है। खरबूजे को देख खरबूजे के रंग बदलने के मुहावारे के अनुरूप टमाटर की महंगाई को देख अन्य सब्जियों व उसमें तड़का लगाने में काम आने वाले लहसुन, प्याज व अदरक के दाम उछलने लगे हैं। निस्संदेह, रिटेल माफिया का बड़ा हाथ इस तरह की महंगाई को बढ़ाने में होता है। यह विडंबना ही कि अमृतकाल के दावों के बीच हम किसानों को कोल्ड स्टोरेज की सुविधा उपलब्ध नहीं करा पाये हैं। वह खेत से फसल काटकर तुरंत बाजार में बेचने को मजबूर होता है क्योंकि सब्जियां जल्दी खराब हो जाती हैं। जिसका फायदा बिचौलिये और मुनाफाखोर उठाते हैं। किसान ज्यादा फसल उगाता है तो भी नुकसान में रहता है और कम उगाता है तो भी नुकसान में रहता है। अच्छी फसल का लाभ न किसान को मिलता है और न उपभोक्ता को ही।

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